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देव शर्मा
करनाल। शहरी निकाय चुनाव में भितरघात के साथ बिरादरियों का समीकरण साधने में भाजपा चूक गई। वहीं गठबंधन का अपेक्षित सहयोग न मिल पाना आदि कई ऐसे कारण भाजपा की मजबूत रणनीति, सक्रिय कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत पर भारी पड़ गए। घरौंडा में जैसे तैसे मतगणना के अंतिम दौर में भले ही भाजपा अपनी साख बचाने में कामयाब हो गई, लेकिन उसे झटका जरूर लगा है। वहीं, हरियाणा में अपने पैर पसारने के भरसक प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी जिले में अपना खाता भी नहीं हो सकी है। कांग्रेस भले ही चुनावी समर से बाहर रही हो, लेकिन उसने आंतरिक तौर पर कई स्थानों पर सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशियों को करारी चोट पहुंचाई है। बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना एक प्रत्याशी उतारा था, लेकिन मुकाबले में भी शामिल नहीं हो सका।
शहरी निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी के सभी सीटों पर उतरने से मुकाबला रोचक होने के आसार शुरू से नजर आ रहे थे। कांग्रेस पहले ही मैदान छोड़ गई थी। घरौंडा चूंकि भाजपा विधायक हरविंद्र कल्याण का गृहनगर है, यहां से सीधे तौर पर उनकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी है, इसलिए विपक्षियों ने भी घरौंडा पर ही पूरा फोकस रखा। यही कारण रहा कि हर उस बिरादरी से एक प्रत्याशी मैदान में उतरा, जो कहीं न कही भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। जैसे वैश्य बिरादरी से भाजपा ने हैपी लक गुप्ता को प्रत्याशी बनाया तो आम आदमी पार्टी ने भी इसी बिरादरी से सुरिंदर कुमार सिंगला को उतार दिया। दूसरी बड़ी बिरादरी राजपूत मानी जाती है तो उससे मलखान सिंह राणा मैदान में आ गए। सिख समाज से पूर्व चेयरमैन अमरीक सिंह उतरे, जो इससे पहले भाजपा नेताओं के समर्थन से ही चेयरमैन बने थे। वहीं भाजपा के बड़े नेताओं ने पंजाबी बिरादरी को मनाने में कोई कसर नहीं रखी।
पंजाबी बिरादरी पहले टिकट चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका तो भाजपा से रुष्ट होकर उन्होंने अपना प्रत्याशी विनोद जुनेजा को उतार दिया। पाल बिरादरी से भी सुभाष पाल चुनावी समर में कूद गए। कुल मिलाकर घेराबंदी काफी मजबूत हो गई, यही कारण रहा कि आप का प्रत्याशी शुरू से बढ़त लेकर चला। ये और बात है कि अंतिम चक्र में 31 मतों से भाजपा प्रत्याशी को जीत मिल गई। भाजपा नेता ईलम सिंह ने तो यहां तक कहा कि जजपा ने गठबंधन धर्म नहीं निभाया। दो बड़े भाजपा नेता भी क्षेत्र में नजर नहीं आए। इसलिए अन्य सीटों पर भाजपा प्रत्याशी काफी कम अंतर से हारे हैं। असंध में चेयरमैन पद की सीट रिजर्व थी, यहां भी भाजपा समर्थित पार्टियां उलझ गईं। कांग्रेस के दो धड़ों ने दो अलग-अलग प्रत्याशियों का समर्थन किया। कम अंतर से भाजपा हार गई। निसिंग में भाजपा पहले ही दो कार्यकर्ताओं के बीच उलझ गई। वहीं, विधायक धर्मपाल गोंदर का भी दबाव रहा, जिसके कारण यहां पार्टी सिंबल ही नहीं दे सकी। तरावड़ी में भी भाजपा को अपनों का साथ नहीं मिल पाया, जिससे यहां भी प्रत्याशी 538 मतों से पीछे रह गया।
आप के हाथ लगी निराशा
इस सबके साथ-साथ आम आदमी पार्टी को भी पहले ही चुनाव में बड़ा झटका लगा है, हालांकि पार्टी के पास इन क्षेत्रों में खोने के लिए कुछ नहीं था, फिर भी बड़े नेताओं ने पूरा जोर लगाया था। घरौंडा में दूसरे नंबर पर आना जरूर उपलब्धि कही जा सकती है, लेकिन अन्य सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों का जो हाल रहा, उससे पार्टी के मंसूबों को मायूसी जरूर मिली है।
देव शर्मा
करनाल। शहरी निकाय चुनाव में भितरघात के साथ बिरादरियों का समीकरण साधने में भाजपा चूक गई। वहीं गठबंधन का अपेक्षित सहयोग न मिल पाना आदि कई ऐसे कारण भाजपा की मजबूत रणनीति, सक्रिय कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत पर भारी पड़ गए। घरौंडा में जैसे तैसे मतगणना के अंतिम दौर में भले ही भाजपा अपनी साख बचाने में कामयाब हो गई, लेकिन उसे झटका जरूर लगा है। वहीं, हरियाणा में अपने पैर पसारने के भरसक प्रयास कर रही आम आदमी पार्टी जिले में अपना खाता भी नहीं हो सकी है। कांग्रेस भले ही चुनावी समर से बाहर रही हो, लेकिन उसने आंतरिक तौर पर कई स्थानों पर सत्तारूढ़ दल के प्रत्याशियों को करारी चोट पहुंचाई है। बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना एक प्रत्याशी उतारा था, लेकिन मुकाबले में भी शामिल नहीं हो सका।
शहरी निकाय चुनाव में आम आदमी पार्टी के सभी सीटों पर उतरने से मुकाबला रोचक होने के आसार शुरू से नजर आ रहे थे। कांग्रेस पहले ही मैदान छोड़ गई थी। घरौंडा चूंकि भाजपा विधायक हरविंद्र कल्याण का गृहनगर है, यहां से सीधे तौर पर उनकी प्रतिष्ठा भी जुड़ी है, इसलिए विपक्षियों ने भी घरौंडा पर ही पूरा फोकस रखा। यही कारण रहा कि हर उस बिरादरी से एक प्रत्याशी मैदान में उतरा, जो कहीं न कही भाजपा का वोट बैंक माना जाता है। जैसे वैश्य बिरादरी से भाजपा ने हैपी लक गुप्ता को प्रत्याशी बनाया तो आम आदमी पार्टी ने भी इसी बिरादरी से सुरिंदर कुमार सिंगला को उतार दिया। दूसरी बड़ी बिरादरी राजपूत मानी जाती है तो उससे मलखान सिंह राणा मैदान में आ गए। सिख समाज से पूर्व चेयरमैन अमरीक सिंह उतरे, जो इससे पहले भाजपा नेताओं के समर्थन से ही चेयरमैन बने थे। वहीं भाजपा के बड़े नेताओं ने पंजाबी बिरादरी को मनाने में कोई कसर नहीं रखी।
पंजाबी बिरादरी पहले टिकट चाहती थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका तो भाजपा से रुष्ट होकर उन्होंने अपना प्रत्याशी विनोद जुनेजा को उतार दिया। पाल बिरादरी से भी सुभाष पाल चुनावी समर में कूद गए। कुल मिलाकर घेराबंदी काफी मजबूत हो गई, यही कारण रहा कि आप का प्रत्याशी शुरू से बढ़त लेकर चला। ये और बात है कि अंतिम चक्र में 31 मतों से भाजपा प्रत्याशी को जीत मिल गई। भाजपा नेता ईलम सिंह ने तो यहां तक कहा कि जजपा ने गठबंधन धर्म नहीं निभाया। दो बड़े भाजपा नेता भी क्षेत्र में नजर नहीं आए। इसलिए अन्य सीटों पर भाजपा प्रत्याशी काफी कम अंतर से हारे हैं। असंध में चेयरमैन पद की सीट रिजर्व थी, यहां भी भाजपा समर्थित पार्टियां उलझ गईं। कांग्रेस के दो धड़ों ने दो अलग-अलग प्रत्याशियों का समर्थन किया। कम अंतर से भाजपा हार गई। निसिंग में भाजपा पहले ही दो कार्यकर्ताओं के बीच उलझ गई। वहीं, विधायक धर्मपाल गोंदर का भी दबाव रहा, जिसके कारण यहां पार्टी सिंबल ही नहीं दे सकी। तरावड़ी में भी भाजपा को अपनों का साथ नहीं मिल पाया, जिससे यहां भी प्रत्याशी 538 मतों से पीछे रह गया।
आप के हाथ लगी निराशा
इस सबके साथ-साथ आम आदमी पार्टी को भी पहले ही चुनाव में बड़ा झटका लगा है, हालांकि पार्टी के पास इन क्षेत्रों में खोने के लिए कुछ नहीं था, फिर भी बड़े नेताओं ने पूरा जोर लगाया था। घरौंडा में दूसरे नंबर पर आना जरूर उपलब्धि कही जा सकती है, लेकिन अन्य सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों का जो हाल रहा, उससे पार्टी के मंसूबों को मायूसी जरूर मिली है।
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