in

भास्कर ओपिनियन:विशेष क्षेत्रों की संपदा के बेतरतीब दोहन ने हमेशा नुक़सान ही किया Politics & News

भास्कर ओपिनियन:विशेष क्षेत्रों की संपदा के बेतरतीब दोहन ने हमेशा नुक़सान ही किया

[ad_1]

  • Hindi News
  • Opinion
  • Unsystematic Exploitation Of The Wealth Of Specific Areas Has Always Caused Harm

6 दिन पहलेलेखक: नवनीत गुर्जर, नेशनल एडिटर, दैनिक भास्कर

  • कॉपी लिंक

इतिहास गवाह है- कई राज्यों और उनके कुछ ख़ास क्षेत्रों या इलाक़ों में आदिवासियों या वहाँ के मूल निवासियों ने अपनी जान देकर भी उस राज्य की असल संपदा को बचाया है। वजह साफ़ है-वन में रहने वाले, पेड – पौधों को जान से भी ज्यादा प्रेम करने वाले आदिवासी संप्रदाय ने वनों की अस्मिता को हमेशा खुद से, परिवार से और उस वन की संपदा से जोड़े रखा। उसकी हमेशा रक्षा की। उसका दोहन कभी नहीं किया। कोशिश भी की कि कोई उसका दोहन ग़ैर रीति से या अनाप- शनाप न कर पाए।

लेकिन विकास की अंधी दौड़ इसके मर्म को कभी समझ नहीं पाई। चंद उद्योगपति इस तरह की उर्वरा भूमि का अपने हित में, कभी चोरों की तरह तो कभी सरकारी शक्ति का दुरुपयोग करके दोहन करते रहे। लद्दाख में रहने वाले जाने- माने शिक्षाविद् सोनम वांगचुक सही कहते हैं कि सरकारें या किसी राज्य को गवर्न करने वाली सर्वोच्च शक्ति केवल दो- तीन या अधिकतम पाँच साल आगे की बात ही सोच पाती है जबकि स्थानीय निवासी अगली पीढ़ी तक का भविष्य सोचकर निर्णय लेने में सक्षम होती है। यही वजह है कि खटाखट- फटाफट विकास करने वाली शक्तियों ने स्थानीयता या स्थानीय लोगों से न तो कभी राय ली और न ही उसकी राय को कभी महत्व दिया।

लद्दाख के लोगों की मांगों को लेकर सोनम वांगचुक 6 मार्च से 26 मार्च तक भूख हड़ताल की थी।

लद्दाख के लोगों की मांगों को लेकर सोनम वांगचुक 6 मार्च से 26 मार्च तक भूख हड़ताल की थी।

खुद वांगचुक अब लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देकर उसे छठी अनुसूची में रखने की माँग कर रहे हैं। सरकार इस बारे में कोई स्पष्ट निर्णय तो अब तक नहीं ले सकी लेकिन परोक्ष रूप से यह माना जा रहा है कि सरकार इस माँग को पूरा करना नहीं चाहती। अब ये छठी अनुसूची का मामला क्या है? दरअसल इस अनुसूची में किसी राज्य के आ जाने के बाद वहाँ का विकास या वहाँ कोई औद्योगिक इकाई की स्थापना स्थानीय लोगों से विचार किए बिना नहीं की जा सकती। औद्योगिक घरानों को यह मंज़ूर नहीं। अभी स्थिति यह है कि उपराज्यपाल से मंज़ूरी लीजिए और जहां चाहें इंडस्ट्री लगाइए!

वांगचुक चाहते हैं कि सरकारी शक्ति के कारण किसी राज्य या क्षेत्र की संपदा का दोहन या उसका ग़लत तरीक़े से विकास नहीं होना चाहिए। ऐसा करने से उस क्षेत्र विशेष का मूल स्वरूप तो प्रभावित होता ही है, उसकी उर्वरा शक्ति भी बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। ऐसी गतिविधियाँ वहाँ के मौसम, वहाँ के भौगोलिक तारतम्य को भी बिगाड़ सकती हैं।

खैर, सरकार का निर्णय जो भी हो लेकिन किसी भी क्षेत्र के मूल स्वरूप से बेतरतीब छेडछाड कम से कम उस क्षेत्र और वहाँ के लोगों के हित में तो नहीं ही हो सकता। उत्तराखंड में लगातार हो रहे भूस्खलन को देख लीजिए! हिमाचल के पहाड़ों से सैलाब की तरह आती तबाही को देख लीजिए। कहीं किसी राज्य में बाढ़ और कहीं सूखे की आहट को देखकर ही पहचाना जा सकता है कि आख़िर यह सब किसका नतीजा है!

खबरें और भी हैं…

[ad_2]
भास्कर ओपिनियन:विशेष क्षेत्रों की संपदा के बेतरतीब दोहन ने हमेशा नुक़सान ही किया

​Election overhang: On economic activity Politics & News

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन का कॉलम:‘हम’ शब्द में छुपी हुई ताकत है! Politics & News