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- Rajasthan MLA Salary; CM Bhajan Lal Sharma (Appropriation Bill) Annoucement
राज्यों में विधायक होते हैं। उनमें से किसी एक पक्ष के लोग मिलकर सरकार बनाते हैं। लगता है-सरकार इसलिए बनाई जाती है ताकि विधायकों, मंत्रियों की सुविधाएँ बढ़ाई जा सकें। उनके वेतन- भत्तों में लगातार बढ़ोतरी की जा सके। हाल ही में राजस्थान सरकार ने एक विधेयक पारित किया।
इसमें प्रावधान है कि अब विधायकों की तनख़्वाह हर साल खुद ही बढ़ती रहेगी। इसके लिए बार- बार विधेयक या प्रस्ताव पास करने की ज़रूरत नहीं होगी। एक राज्य तो विधायकों को वेतन- भत्ते देने के अलावा उनका इनकम टैक्स भी खुद ही भर रहा था। यानी सरकार भुगत रही थी। कुछ राज्य ऐसे थे जिन्होंने प्रावधान कर रखा था कि जितनी बार विधायक, उतनी गुना पेंशन। यानी दूसरी बार विधायक बनने पर दोगुनी, तीसरी बार में तिगुनी और चौथी बार में चौगुनी! वक्त रहते ऐसे राज्यों में से कुछ को सूझ बैठी और उन्होंने ये दोगुनी, तिगुनी पेंशन बंद कर दी, लेकिन वेतन- भत्ते तो अब भी लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं।
सीएम भजनलाल शर्मा ने विधानसभा में कई घोषणाएं कीं।
आम आदमी के टैक्स में कोई कमी नहीं करना चाहता क्योंकि उसी टैक्स से तो ये सब वेतन- भत्ते और बाक़ी सुविधाएँ भोगी जाती हैं! सामान्य व्यक्ति के ऊपर लदे टैक्स का कोई पारोवार नहीं है। सबसे पहले तो उसे टैक्स कटकर ही वेतन मिलता है। फिर उस टैक्स कटे हुए पैसे से जब वो कुछ ख़रीदता है तो पाँच प्रतिशत से 28 प्रतिशत तक जीएसटी देता है। पेट्रोल की जितनी असल क़ीमत नहीं होती उससे दुगना उस पर टैक्स गिना जाता है। वह भी भुगतना पड़ता है। हालाँकि यह सब वर्षों से चला आ रहा है।
अब सवाल उठता है कि आज अचानक इस सब का क्या तात्पर्य? दरअसल, ज़िन्दगी के कई वे पल, जो कभी वक्त की कोख से जन्मते हैं और वक्त की कोख में ही गिर जाते हैं। कभी – कभी ऐसा भी होता है कि वक्त की ये सारी क़ब्रें अचानक खुल जाती हैं और वे पल, जीते- जागते हमारे सामने आ खड़े हो जाते हैं।
मन का ग़ुबार निकालने के लिए इसे आप क़यामत की रात भी समझ सकते हैं। वास्तविकता में हर आम आदमी टैक्स के इस झंझट को हमेशा झेलता है और विधायकों, मंत्रियों की सुख- सुविधाओं के बारे में भी सुनता रहता है, लेकिन कभी कुछ कहता नहीं। तब भी नहीं, जब ये नेता हमारे घर के आगे वोट माँगने आते हैं। बडे- बड़े वादे करते हैं। तब भी नहीं जब इनके घर के आगे जाने पर हमें दूर से ही दुत्कार कर भगा दिया जाता है। … और तब भी नहीं, जब हम नाली, सड़क, गंदगी और बाक़ी समस्याओं से दो- चार होते रहते हैं और हमारा वोट पाकर मज़े कर रहे इन नेताओं के माथे पर चिंता की एक लकीर तक नहीं दिखाई देती!
विधानसभा या कमेटियों की बैठक में शामिल होने के 2000 रुपए मिलते हैं। अगर 15 दिन बैठक हुई तो महीने के करीब 30 हजार मिलेंगे।
दरअसल, हाथ जोड़े हमारे घर के सामने खड़े इन नेताओं के प्रति हमें दया आ जाती है। जबकि हम जानते हैं कि कल ही हमारी इस दया को ये घोलकर पी जाएँगे। गलती हमारी है! हमारा ग़ुस्सा कहीं खो गया है। वह जागता नहीं। वैसे ही जैसे- पहाड़ों से झरनों की शक्ल में उतरती, चट्टानों से टकराती, पत्थरों में अपना रास्ता खोजती, उमड़ती, घुमड़ती, बल खाती, अनगिनत भँवर बनाती, अपने ही किनारों को काटती हुई, तेज चलती नदी जब मैदानों में आती है तो शांत हो जाती है। गहरी भी। हमारे मन की इसी गहराई, इसी शांति का ये नेता मज़ाक़ बनाते हैं। लोगों के साथ राजनीति के इस भावनात्मक मज़ाक़ का हमें करारा जवाब देना चाहिए। देना ही होगा। अभी। इसी वक्त?
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भास्कर ओपिनियन:विधायकों, सरकारों की मनमानी और आम लोगों की बेबसी