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मोहम्मद यूनुस ने 8 अगस्त को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख के तौर पर शपथ ली थी।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख नोबेल विजेता मोहम्मद यूनुस को भ्रष्टाचार से जुड़े एक मामले में बरी कर दिया गया है। बांग्लादेश के एंटी करप्शन कमीशन (भ्रष्टाचार विरोधी आयोग) ने यूनुस पर भ्रष्टाचार के संबंध में एक केस दर्ज किया था।
बांग्लादेश में 3 दिन पहले ही अंतरिम सरकार का गठन हुआ है। अंतरिम सरकार के गठन से एक दिन पहले भी यूनुस को श्रम कानूनों के उल्लंघन से जुड़े एक मामले में बरी किया गया था। भ्रष्टाचार के मामले में सरकार में सलाहकार के तौर पर शामिल नूरजहां बेगम को भी बरी किया गया है।
बांग्लादेशी अखबार डेली स्टार के मुताबिक एंटी करप्शन कमीशन ने ढाका कोर्ट में दाखिल अपनी शिकायत को वापस ले लिया है। इससे पहले 5 अगस्त को बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को हिंसा के कारण देश छोड़कर भागना पड़ा था।
ग्रामीण टेलीकॉम में भ्रष्टाचार और नियमों के उल्लंघन का आरोप
मोहम्मद यूनुस पर ग्रामीण टेलीकॉम के चेयरमेन रहते हुए श्रम कानूनों के उल्लंघन का आरोप लगा था। यूनुस के अलावा ग्रामीण टेलीकॉम के डायरेक्टर अशरफुल हसन, मोहम्मद शाहजहां और वर्तमान अंतरिम सरकार में सदस्य नूरजहां बेगम को भी श्रम कानूनों के उल्लंघन का आरोपी बनाया गया।
इस साल 1 जनवरी को सभी आरोपियों को 20 हजार रूपए के जुर्माने के साथ 6 महीने की सजा सुनाई गई थी।
इसके अलावा जून में एंटी करप्शन कमीशन ने यूनुस समेत अन्य 13 लोगों पर भ्रष्टाचार का केस दर्ज किया था इन सभी पर ग्रामीण टेलीकॉम के कर्मचारियों के प्रोफिट फंड से लगभग 18 करोड़ रुपए के गबन का आरोपा था। यूनुस को आज इसी मामले में बरी किया गया है।
सालों तक इकोनॉमिक्स पढ़ाकर, उसे फिजूल बताया
मोहम्मद यूनुस एक सोशल वर्कर, बैंकर और अर्थशास्त्री हैं। उनका जन्म 28 जून 1940 को गुलाम और अविभाजित भारत में हुआ। वे बंगाल के चिटगांव में एक जौहरी, हाजी मोहम्मद शौदागर के घर पैदा हुए थे। ढाका यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स की शुरुआती पढ़ाई के बाद वे अमेरिका चले गए। जहां उन्होंने PhD की और इकोनॉमिक्स पढ़ाने लगे।
यूनुस बांग्लादेश की आजादी के बाद देश लौटे। उन्होंने चिटगांव यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट के हेड का पद संभाला। ये वो दौर था जब देश की हालत ठीक नहीं थी। 1971 की जंग के बाद बांग्लादेश के लाखों लोग 2 वक्त की रोटी को तरस रहे थे।
नोबेल प्राइज मिलने के बाद राजनीति में उतरे
लोगों को गरीबी से निकालने की वजह से मोहम्मद यूनुस को ‘गरीबों का दोस्त’ और ‘गरीबों का बैंकर’ कहा जाने लगा। गरीबी मिटाने के लिए 2006 में ग्रामीण बैंक और मोहम्मद यूनुस को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
18 फरवरी 2007 को यूनुस ने ‘नागरिक शक्ति’ नाम से एक राजनीतिक पार्टी बनाई। उन्होंने कहा कि वे इस पार्टी में साफ-सुथरी छवि वाले लोगों को ही शामिल करेंगे।
यूनुस का इरादा 2008 का चुनाव लड़ने का था। उन्होंने इसके लिए अपनी पार्टी में बड़े नामों को जोड़ा, जिसमें प्रोफेसर और चर्चित पत्रकार शामिल थे। हालांकि, तब ऐसा कहा गया था कि यूनुस के इस कदम के पीछे सेना का हाथ है।
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शपथ लेने वालों में हसीना के विरोधी रहे छात्र नेता नाहिद इस्लाम और आसिफ महमूद भी शामिल हैं। पूरी खबर यहां पढ़ें…
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वे यहां से लंदन, फिनलैंड या किसी दूसरे देश जा सकती हैं। एयरबेस पर सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने शेख हसीना से करीब एक घंटे तक बातचीत की। हसीना के देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश के सेना प्रमुख ने कहा, ‘हम अंतरिम सरकार बनाएंगे, देश को अब हम संभालेंगे। आंदोलन में जिन लोगों की हत्या की गई है, उन्हें इंसाफ दिलाया जाएगा।’ पूरी खबर यहां पढ़ें…
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