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बचपन की सहजता को गुम न होने दें…:यह रचनात्मकता बढ़ाती है, कम्फर्ट जोन से निकलें, यादगार पल मिलेंगे Health Updates

एक्सपर्ट बोले- कभी-कभी बिना योजना बनाए काम करें, सहज बनना आसान होगा। - Dainik Bhaskar

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न्यूयॉर्क1 दिन पहले

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एक्सपर्ट बोले- कभी-कभी बिना योजना बनाए काम करें, सहज बनना आसान होगा। - Dainik Bhaskar

एक्सपर्ट बोले- कभी-कभी बिना योजना बनाए काम करें, सहज बनना आसान होगा।

मेरा नौ साल का बेटा उछलता है, कूदता है, बाहें फैलाता है, म्यूजिक से उसका कोई लेना-देना नहीं है, पर किसी भी धुन पर यूं ही डांस करने लगता है… ऐसी सहजता बचपन में ही दिखती है। यह कहना है हेल्थ, साइंस और टेक एक्सपर्ट मैट फुच का।

फुच कहते हैं जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, यह सहजता घटती जाती है। याद रखें, जीवन एक रोमांच है, और कभी-कभी सबसे यादगार पल तब होते हैं जब हम कम्फर्ट जोन से बाहर निकलते हैं। सहजता हमारी जिंदगी को नया आयाम दे सकती है। यह कैसे होगा, जानिए एक्सपर्ट से…

24×7 फोकस्ड रहना मुश्किल है, कभी खुद को सरप्राइज दें; ज्यादा सोचने से बचें… ​

विचारों को भटकने दें

बिना कोई योजना बनाए टहलने निकल जाएं। घूमते वक्त कल्पना करें, रास्ता भूल जाएं। ड्यूक यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस एक्सपर्ट एंड्रयूज हन्ना कहती हैं,‘आप अपने दिमाग को 24/7 केंद्रित नहीं कर सकते। इसलिए मैं अक्सर बिना टू डू लिस्ट बनाए और बगैर किसी डिस्ट्रेक्शन के वर्कआउट करती हूं। विचारों को भटकने देती हूं। हार्वर्ड के न्यूरोबायोलॉजिस्ट संदीप रॉबर्ट दत्ता बताते हैं कि उनके पिता को पार्किंसंस रोग है। वे उन्हें बिना बताए मॉल, समुद्र तट या नई जगह ले जाते हैं तो वे उत्साहित हो जाते हैं।

मनचाहा लिखने बैठ जाएं

ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर एडवर्ड स्लिंगरलैंड कहते हैं, फ्री राइटिंग करने से भी आप खुद को सहज बना सकते हैं। अपने विचारों को बिना रुके और नियमों की परवाह किए बिना लिखने का अभ्यास फ्री राइटिंग कहलाता है।

बच्चों के साथ खेलें

एंड्रूज-हन्ना दिन में कुछ देर बच्चों के साथ जरूर खेलती हैं, वह कहती हैं, ‘मैं उन्हें समझाने के बजाय, उनके सोचने के तरीके में ढलने की कोशिश करती हूं। हमारे लिए यह बहुत मुश्किल है, लेकिन 3-4 साल के बच्चे के लिए यह स्वाभाविक है। इससे मुझे उनसे जुड़ने और अपनी सोच को लचीला बनने में बहुत मदद मिलती है। इस गतिविधि ने मेरे न्यूरल कनेक्शन खोल दिए हैं। मुझे अच्छा महसूस होने लगा है।’

कोशिश न करने की कोशिश

स्लिंगरलैंड कहते हैं कभी-कभी, कोशिश और अत्यधिक सोचना प्रदर्शन व रचनात्मकता में बाधा डाल सकता है। सहजता से रचनात्मकता व समस्या-समाधान में बढ़ोतरी हो सकती है। हम कोशिश करना बंद करते हैं, तो अवचेतन मन को नियंत्रण करने देते हैं। इससे इनोवेटिव समाधान निकल सकते हैं।

इम्प्रोव क्लास फायदेमंद

इजरायल के क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट​ताली मैरॉन कहते अभिनय, कॉमेडी, गायन या संगीत से जुड़ी गतिविधियों से जुड़ें। इसे इम्प्रोव कहते हैं। इम्प्रोव क्लास डिप्रेशन व चिंता घटाकर रचनात्मकता बढ़ाती है। डेट्रॉयट में हुई स्टडी के मुताबिक इम्प्रोव क्लास से जुड़ने वाले बच्चे अनिश्चितता सहन करने में बेहतर हुए, उनकी चिंता में भी कमी आई।

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