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- Prof. Chetan Singh Solanki’s Column Energy ‘fast’ To Fight Climate Change

प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर
आज अधिकांश बुद्धिजीवी, संस्थाएं और नेता जलवायु परिवर्तन की समस्या को हल करने के लिए कुछ न कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन समाधान खोजने के पारंपरिक तरीके हमें वांछित परिणाम नहीं दे रहे हैं।
वर्ष 1997 से इस भयावह समस्या का हल हम क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते जैसी नीतियों में खोज रहे हैं। सौर और पवन जैसी अक्षय ऊर्जा में उल्लेखनीय रूप से विकास हुआ है, लागतें घट गई हैं और क्षमताएं बढ़ गई हैं। इस बीच, आर्थिक वृद्धि भी जारी रही है। इनके बावजूद, वैश्विक तापमान न केवल बढ़ता जा रहा है, बल्कि यह गति भी पकड़ रहा है।
यहां तक कि अक्षय ऊर्जा के उपयोग जैसे समाधानों के बारे में भी बात करें तो हमारा ध्यान अधिक अक्षय ऊर्जा पैदा करने पर ही होता है, न कि ऊर्जा खपत को कम करने पर। इस मानसिकता के चलते सौर पैनल, इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी आदि का उत्पादन बढ़ता जा रहा है और उसी अनुपात में आवश्यक संसाधन, सामग्रियां और बिजली की खपत भी। इन सब सामग्रियों और उत्पादों के पुनःचक्रण की समस्या तो है ही। अक्षय ऊर्जा तकनीकों का पर्यावरणीय प्रभाव जीवाश्म ईंधनों की तुलना में कम है, लेकिन यह शून्य नहीं है।
आज वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड स्तर बढ़ रहा है, वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, और मौसम की गंभीर घटनाएं बढ़ रही हैं। महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था, ‘हम अपनी समस्याओं को उसी सोच के साथ हल नहीं कर सकते, जिसका उपयोग हमने उन्हें बनाने के लिए किया था।’
हमारी अधिक उपभोग करने और आर्थिक विकास की मानसिकता ने ही आज पृथ्वी पर पारिस्थितिक तनाव पैदा कर दिया है। परिणाम है, प्राकृतिक संसाधनों का क्षरण, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन।
सामान्य धारणा के उलट इस समस्या से निपटने के लिए मेरा प्रस्ताव है- ‘कुछ ना करना’। इस विचार के पीछे तर्क है कि कुछ करना यानी अधिक ऊर्जा का प्रयोग यानी अधिक कार्बन उत्सर्जन यानी अधिक जलवायु परिवर्तन।

हमारे देश में, हम अपने मन और शरीर की सफाई के लिए उपवास रखते हैं। ठीक उसी तरह, क्यों न हम ‘ऊर्जा का उपवास’ करें और अपने घर, अपनी पृथ्वी को बचाएं। एक साल तक नए कपड़े न खरीदने का निर्णय ‘कपड़े का उपवास’ हो सकता है।
दूर-दराज के पर्यटन स्थलों की यात्रा न करना ‘यात्रा का उपवास’ बन जाता है। पैक किए गए खाद्य पदार्थों से बचना ‘पैकेज्ड फूड उपवास’ है और स्नान के लिए गर्म पानी का उपयोग न करना ‘गर्म पानी ऊर्जा उपवास’ है, बिना प्रेस किए कपड़ों को पहनना ‘बिजली ऊर्जा उपवास’ है।
किसी भी परिवेश, देश, शिक्षा-स्तर और आर्थिक स्थिति का व्यक्ति अपना ‘ऊर्जा उपवास’ निर्धारित कर सकता है। एक बड़े स्तर पर ऊर्जा उपवास का मतलब है, कम ऊर्जा का उपयोग, यानी कम कार्बन उत्सर्जन यानी जलवायु सुधार। यह दृष्टिकोण हमारे सचेत जीवन और स्थिरता की मानसिकता को भी बढ़ावा देता है।
ऊर्जा उपवास के लिए अतिरिक्त वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता नहीं है। वास्तव में, यह अक्सर सामानों और सेवाओं की खपत को कम करके पैसे बचाता है। उदाहरण के लिए, एक नई कार या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस न खरीदना पैसे और उत्पादन के लिए आवश्यक संसाधनों दोनों को बचाता है।
अनावश्यक कार्यों से बचकर, हम प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करते हैं। इससे पर्यावरण पर दबाव कम होता है और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलती है। यह तकनीकी समाधान के विपरीत है, जिसके लिए अक्सर विकास, कार्यान्वयन और स्केलिंग के लिए समय की आवश्यकता होती है।
ऊर्जा खपत को सचेत रूप से कम करके, अपशिष्ट को कम करके, और अधिक सरलता से जीने का निर्णय लेकर, हम अपने कार्बन पदचिह्न को काफी हद तक कम कर सकते हैं और अधिक स्थायी भविष्य को बढ़ावा दे सकते हैं। तो क्या आप अपने ऊर्जा उपवास को शुरू करेंगे? अपने ऊर्जा उपवास की सूची बनाएं और साझा करें!
किसी भी परिवेश, देश, शिक्षा-स्तर और आर्थिक स्थिति का व्यक्ति ‘ऊर्जा उपवास’ कर सकता है। इसका मतलब है, कम ऊर्जा का उपयोग, यानी कम कार्बन उत्सर्जन, यानी जलवायु सुधार। यह मानसिक स्थिरता को बढ़ावा देता है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम:जलवायु-परिवर्तन से संघर्ष के लिए ऊर्जा का ‘उपवास’