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पवन के. वर्मा का कॉलम:प्रशासनिक गफलत के बीच पिस रहे हैं दिल्ली के लोग Politics & News

पवन के. वर्मा का कॉलम:प्रशासनिक गफलत के बीच पिस रहे हैं दिल्ली के लोग Politics & News

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9 दिन पहले

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पवन के. वर्मा लेखक, राजनयिक, पूर्व राज्यसभा सांसद। - Dainik Bhaskar

पवन के. वर्मा लेखक, राजनयिक, पूर्व राज्यसभा सांसद।

दिल्ली में एक कोचिंग संस्थान के बेसमेंट में पानी घुसने से तीन युवा विद्यार्थियों की मौत लोमहर्षक है। हादसे के बाद से ही राजनेता दोषारोपण के खेल में लगे हैं : भाजपा, आम आदमी पार्टी (‘आप’) को दोषी ठहराती है, और ‘आप’ भाजपा को।

एक त्रासदी को भी मीडिया और राजनीति के अखाड़े में फुटबॉल की तरह यहां-वहां धकेला जा रहा है। हमारे राजनीतिक वर्ग को औरों पर अंगुली उठाना आसान लगता है, लेकिन कोई भी गंभीरता से और मिल-जुलकर ऐसी त्रासदियों के लिए जिम्मेदार प्रणालीगत कारणों को हल नहीं करना चाहता। मूल समस्या यह है कि कोई नहीं जानता दिल्ली को कौन चला रहा है, और इसीलिए, आपदाओं के लिए भी किसी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

संविधान में संघवाद के सिद्धांत के अनुसार केंद्र और राज्यों के बीच जिम्मेदारियों का विभाजन किया गया है। लेकिन केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में यह लागू नहीं होता। वहां की निर्वाचित सरकार- जो कि ‘आप’ की है- का अधिकारियों पर कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा नामित उपराज्यपाल (एलजी) उन्हें नियंत्रित करते हैं।

प्रशासनिक रूप से, यह एक अव्यावहारिक स्थिति है। दिल्ली के लोगों ने ‘आप’ को चुना है, लेकिन न तो मुख्यमंत्री और न ही उनके कैबिनेट मंत्रियों के पास उनके अधीन काम करने वाले नौकरशाहों की नियुक्ति और प्रदर्शन पर कोई नियंत्रण है।

ये सच है कि राष्ट्रीय राजधानी होने के नाते दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं है। लेकिन इस व्यवस्था के तहत भी एलजी के पास केवल तीन विशिष्ट शक्तियों का नियंत्रण था : भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस। किंतु मई 2015 में केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक कार्यकारी आदेश द्वारा अधिकारियों पर से नियंत्रण भी निर्वाचित सरकार से छीनकर एलजी को दे दिया गया।

‘आप’ सरकार ने स्वाभाविक ही इस आदेश को अदालत में चुनौती दी। 11 मई 2023 को, सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सेवाओं के विभाग को दिल्ली सरकार के अधीन पुन: बहाल कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने संघवाद के सिद्धांतों के अनुरूप ही फैसला सुनाया था, जिसके अनुसार राज्य सरकारों को अपने प्रति उत्तरदायी नौकरशाही के माध्यम से अपनी वैध शक्तियों का प्रयोग करने में सक्षम होना चाहिए। लेकिन केंद्र ने इस फैसले को खारिज करने के लिए एक अध्यादेश जारी किया और दिल्ली सरकार के नौकरशाहों का नियंत्रण फिर से एलजी को दे दिया।

मैं स्वयं एक प्रशासनिक अधिकारी रह चुका हूं और उनकी मानसिकता को जानता हूं। अगर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और वरिष्ठ अधिकारी उसके प्रति जवाबदेह नहीं हैं और न ही उनके प्रदर्शन के मूल्यांकन का अधिकार सरकार को है, तो वे सरकार के आदेशों का पालन क्यों करेंगे?

एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें ‘आप’ सरकार के एक मंत्री वरिष्ठ अधिकारी से संयुक्त निरीक्षण के लिए साथ चलने की विनती करते दिखाई दे रहे हैं और अधिकारी बड़ी ही तल्खी से कह रहे हैं कि वे तभी आएंगे जब उनके पास समय होगा!

जिन तीन युवा छात्रों ने उस बेसमेंट में अपनी सांसें गंवा दीं, उन्हें शायद यह पता नहीं होगा कि स्पष्ट कार्यकारी जवाबदेही पर यह जानबूझकर पैदा किया गया भ्रम ही उनकी मौत का कारण बन गया है। एलजी केंद्रीय गृह मंत्री को रिपोर्ट करते हैं, जो सत्तारूढ़ भाजपा से हैं।

दिल्ली को चलाने वाले नौकरशाह एलजी द्वारा नियंत्रित होते हैं। लोगों ने दिल्ली में ‘आप’ सरकार को चुना है; लेकिन सरकार के पास उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए अत्यधिक सीमित शक्तियां हैं। इन सबके बीच, दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) जैसे कई अन्य प्राधिकरण हैं, जिन्हें 2012 में तीन भागों में विभाजित कर दिया गया था और 2022 में फिर से एक कर दिया गया।

पिछले साल एमसीडी चुनावों में ‘आप’ ने जीत हासिल की, जबकि इससे पहले 15 साल तक इसका नेतृत्व भाजपा के पास था। एक दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) भी है और वह भी केंद्र सरकार को रिपोर्ट करता है। एलजी उसके अध्यक्ष हैं।

भ्रष्टाचार से भरी इस प्रशासनिक दुर्व्यवस्था ने ही उन तीन युवाओं की जान ली है। क्या हमारे राजनेताओं को इसकी परवाह है? क्या संवैधानिक पीठ के फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश का उपयोग करना सही निर्णय था?

यदि हां, तो किस उद्देश्य से? क्या एक ‘डबल इंजन’ सरकार तब काम कर सकती है, जब पटरियां आपस में उलझी हुई हों? क्या एलजी और सीएम के बीच प्रतिकूल संबंध होना जरूरी है? अगला चुनाव जीतने की आपाधापी के बीच पिस रही निर्दोष जिंदगियां क्या कोई मायने नहीं रखतीं?

अगर दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव और वरिष्ठ अधिकारी निर्वाचित सरकार के प्रति जवाबदेह नहीं हैं और न ही उनके प्रदर्शन के मूल्यांकन का अधिकार सरकार को है, तो वे सरकार के आदेशों का पालन भी क्यों करेंगे?
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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