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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: सत्संग भले ही न कर पाएं, पर कुसंग हर्गिज मत करिए Politics & News

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10 घंटे पहले

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

यह व्यावसायिक दौर है। हमें कई लोगों से मिलना-जुलना पड़ता है। कुछ के बारे में हम जानते हैं कि ये अच्छे व्यक्ति नहीं हैं। फिर भी संबंध रखना पड़ेंगे। बस ध्यान रखें कि यदि व्यक्ति अच्छा नहीं है तो कुसंग लंबा न हो जाए।

वाहन चलाते हुए हम सावधानी रखते हैं कि हम किसी से या कोई हमसे न टकरा जाए। कुसंग के मामले में हमें इससे भी अधिक सावधानी रखना चाहिए। अमराई में छोटे भाई भरत को समझाते हुए राम ने कहा था कि दुष्ट लोगों का स्वभाव सुनो।

‘सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ। भूलेहुं संगति करिअ न काऊ। तिन्ह कर संग सदा दुखदाई। जिमि कपिलहि घालइ हरहाई।’ ‘अब असंतों दुष्टों का स्वभाव सुनो, कभी भूल कर भी उनकी संगति नहीं करना चाहिए। उनका संग सदा दुख देने वाला होता है। जैसे हरहाई गाय, कपिला (सीधी और दुधारू) गाय को अपने संग से नष्ट कर डालती है।’

रामजी की यह बात हमें समझना चाहिए कि जिन भी लोगों के साथ हम उठें-बैठें, बस कुसंग न कर जाएं। कुसंग के परिणाम का एक बड़ा उदाहरण है, जिसने भरत जैसे संत को जन्म दिया हो, वो मां कैकेई भी थोड़ी देर का वार्तालाप मंथरा से करती हैं, और रामराज्य चौदह साल के लिए खिसक जाता है। सत्संग भले ही न कर पाएं, पर कुसंग किसी भी हालत में मत करिए।

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