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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:निंदा और स्तुति में समान हों तो कई मुश्किलें दूर होंगी Politics & News

पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:निंदा और स्तुति में समान हों तो कई मुश्किलें दूर होंगी Politics & News

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  • Pt. Vijayshankar Mehta’s Column If Criticism And Praise Are Equal Then Many Difficulties Will Be Overcome

5 दिन पहले

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पं. विजयशंकर मेहता - Dainik Bhaskar

पं. विजयशंकर मेहता

‘निंदा और स्तुति यानी बड़ाई…’ इन दोनों में यदि हम समान होने लग जाएं तो जीवन की कई समस्याओं का निदान हो जाएगा। हमारी बहुत सारी ऊर्जा इसी बात में लग जाती है कि हमारी निंदा क्यों हो रही है।

निंदा होते ही अहंकार को चोट लगती है और यही स्थिति स्तुति में है। जैसे ही किसी ने हमारी तारीफ की, अहंकार का पोषण होना शुरू हो गया। फिर कैसे इन दोनों पर काबू पाया जाए? एक संत वृत्ति होती है, दूसरों के भले के लिए जीना। अपने से ऊपर परमात्मा की शक्ति पर विश्वास रखना।

यही साधु का स्वभाव होता है। श्रीराम, भरत को संतों के लक्षण बता रहे थे। और उन्होंने जो कहा, उसको तुलसीदास जी ने इस तरह व्यक्त किया है, ‘निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज। ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज।’ ‘जिन्हें निंदा और स्तुति, दोनों समान है और मेरे चरण कमलों में जिनकी ममता है, वे गुणों के धाम और सुख की राशि संत मुझे प्राणों के समान प्रिय हैं।’

यहां बातचीत दो भाइयों में हो रही है, तो राम कहते हैं कि परिवार में संत वृत्ति का अर्थ होता है, परिवार के प्रत्येक सदस्य को कमाई के समान अवसर दें। हर सदस्य की काबिलियत को पहचानें। पुरानी परंपराओं को निभाएं और नई परंपराओं की नींव रखें। यही परिवार में संतत्व है।

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