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- Column By Pt. Vijayshankar Mehta Sometimes Fear Has To Be Created For Love
पं. विजयशंकर मेहता
खून और पानी साथ नहीं बह सकता। लेकिन जिनकी वृत्ति राक्षसी होती है, वो दोनों को साथ ही बहाते हैं। रावण उनमें से था। रामकथा सुनने के बाद पार्वती जी ने शिव जी से कहा- भव सागर चह पार जो पावा, राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा। जो संसार रूपी सागर का पार पाना चाहता है, उसके लिए तो श्रीराम जी की कथा दृढ़ नौका के समान है।
भवसागर शब्द लिखा है, क्योंकि संसार एक सागर की तरह है। रावण का मित्र था समुद्र और समुद्र ने श्रीराम जी को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया था। तब राम जी ने मन ही मन कहा होगा कि खून और पानी साथ नहीं बह सकते। सागर का मान इसीलिए किया जा रहा था कि वह जल है। लेकिन रावण का मित्र होने के कारण वह रक्त में बदल रहा था।
राम जी को क्रोध कम आता है पर उन्होंने धनुष-बाण उठा लिया। तुलसी ने लिखा है- बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ ना प्रीति। ऐसे लोगों को भय दिखाकर ही मार्ग पर लाना पड़ेगा। फिर वो उस समय का रावण हो, या आज का।
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पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम: कभी-कभी प्रेम के लिए भय का निर्माण करना पड़ता है