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संवाद न्यूज एजेंसी
कुरुक्षेत्र। मनसा वाचा और कर्मणा से मंगल भावना रखते हुए निर्जला एकादशी का व्रत रखने का काफी महत्व है। 10 जून को सुबह सात बजकर 26 मिनट के बाद एकादशी तिथि शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह पांच बजकर 46 मिनट पर संपन्न होगी। आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि इसे निर्जला, पांडव और भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। निर्जला एकादशी को भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस एक दिन के व्रत से संपूर्ण वर्ष की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य फल मिलता है।
महाभारत की एक प्रचलित कथा के अनुसार भीम ने एकादशी व्रत के संबंध में वेदव्यास से कहा था मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी खाने के बिना नहीं रह सकता। इस कारण से मैं एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त नहीं कर संकूगा। तब वेदव्यास ने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के बारे में बताया। उन्होंने भीम से कहा कि इस एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाएगा। भीम ने इस एकादशी पर व्रत किया था, इसी कारण से इसे भीमसेनी एकादशी कहते हैं।
निर्जला एकादशी पर क्या करें
इस तिथि पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी पिए व्रत किया जाता है। मनसा वाचा कर्मणा शुभ भावना रखें इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। व्रत करने वाले भक्त पानी भी नहीं पीते हैं। सुबह-शाम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। अगले दिन द्वादशी तिथि पर पूजा-पाठ और ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद भोजन ग्रहण करते हैं। इस व्रत में बहुत गर्मी के बीच पानी नहीं पीने के कारण कठिन व्रत माना जाता है। निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीले रंग के कपड़े, फल और अन्न अर्पित करने चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा के बाद इन चीजों को ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
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कुरुक्षेत्र। मनसा वाचा और कर्मणा से मंगल भावना रखते हुए निर्जला एकादशी का व्रत रखने का काफी महत्व है। 10 जून को सुबह सात बजकर 26 मिनट के बाद एकादशी तिथि शुरू होगी, जो अगले दिन सुबह पांच बजकर 46 मिनट पर संपन्न होगी। आचार्य डॉ. सुरेश मिश्रा ने बताया कि इसे निर्जला, पांडव और भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। निर्जला एकादशी को भगवान विष्णु के लिए व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस एक दिन के व्रत से संपूर्ण वर्ष की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य फल मिलता है।
महाभारत की एक प्रचलित कथा के अनुसार भीम ने एकादशी व्रत के संबंध में वेदव्यास से कहा था मैं एक दिन तो क्या, एक समय भी खाने के बिना नहीं रह सकता। इस कारण से मैं एकादशी व्रत का पुण्य प्राप्त नहीं कर संकूगा। तब वेदव्यास ने ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के बारे में बताया। उन्होंने भीम से कहा कि इस एकादशी का व्रत करने से सभी एकादशियों का पुण्य मिल जाएगा। भीम ने इस एकादशी पर व्रत किया था, इसी कारण से इसे भीमसेनी एकादशी कहते हैं।
निर्जला एकादशी पर क्या करें
इस तिथि पर निर्जल रहकर यानी बिना पानी पिए व्रत किया जाता है। मनसा वाचा कर्मणा शुभ भावना रखें इसीलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। व्रत करने वाले भक्त पानी भी नहीं पीते हैं। सुबह-शाम भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। अगले दिन द्वादशी तिथि पर पूजा-पाठ और ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद भोजन ग्रहण करते हैं। इस व्रत में बहुत गर्मी के बीच पानी नहीं पीने के कारण कठिन व्रत माना जाता है। निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को पीले रंग के कपड़े, फल और अन्न अर्पित करने चाहिए। भगवान विष्णु की पूजा के बाद इन चीजों को ब्राह्मण को दान देना चाहिए।
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