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- Nidhi Dugar Kundaliya’s Column Women Have Now Refused To Suffocate In Solitude
निधि डुगर कुंडलिया युवा लेखिका और पत्रकार
बहुत पुरानी बात नहीं है, मैं कमला की स्कूटी पर पीछे बैठकर, राजस्थान के उस छोटे-से पुश्तैनी गांव की संकरी गलियों में घूमती। जयपुर से चार घंटे की दूरी पर स्थित उस गांव में हवेलियों से घिरी गलियों में प्याज की कचौड़ियां खाती, हाथ की बनी बड़ी खरीदती और बावड़ी के पास से गुजरती बकरियों-गायों के झुंड के बीच से जब कोई पुरुष गाड़ी चलाकर ले जाता तो बावड़ी से आती डरावनी गूंज सुनाई देती।
उस दिन, कमला मुझे एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका के घर ले गईं, वह तलाकशुदा महिला अपने तीन बच्चों की कस्टडी के लिए कोर्ट में लड़ रही थीं, जबकि पति फिर से शादी करने वाला था। उस शिक्षिका का घर गांव की तलाकशुदा या तलाक चाह रही महिलाओं के लिए मिलने-जुलने वाली जगह जैसा था। उस महिला के माता-पिता भी वहीं नीचे वाले माले पर रहते थे, लेकिन उसे उनकी कोई मदद नहीं मिलती थी। कमला भी उसी दल का हिस्सा थी।
उसी स्कूल में सहायक खेल शिक्षक कमला से जब मैंने उसके वैवाहिक संकट के बारे में पूछा, तो उसने कंधे उचकाते हुए कहा, ‘ऐसा नहीं है कि वो मुझे पीटता है या शराब पीकर घर आता है। बस वो ठीकठाक कमाता नहीं है, ताकि मेरा और मेरे बच्चे का सहारा बने। और उसे कोई परवाह भी नहीं है।
वह खाना बनाने या सफाई करने से भी मना कर देता है। जब गरीबी के कारण पेट की भूख शांत नहीं हो पाती, तो महिला के लिए भी काम करना उतना ही जरूरी हो जाता है। तलाकशुदा महिलाओं ने घर से बाहर कदम नहीं रखने जैसी मान्यताओं को एक तरफ रख दिया है। वे काम पर जाती हैं। पर बदकिस्मती से उन्हें पुरुषों की तरह कस्बे में नौकरी नहीं मिलती और ज्यादातर को खेतों में या बड़ी हवेलियों में ही काम करना पड़ता है।’
उत्तर भारत में पितृ-सत्तात्मक समाज का एक ऐसा गांव, जहां दशकों पहले 10 से 14 साल तक की उम्र की बच्चियों की शादी का अनुपात देश में सर्वाधिक था, लिंगानुपात में सबसे पीछे था। वहां से लेकर यहां तक की यात्रा काफी लंबी रही है, जहां महिलाएं अब अकेले में घुटने से इंकार कर रही हैं।
सोशल मीडिया पर जागरूकता, पंचायतों से ऊपर कानून व्यवस्था के कारण ये कम पढ़ी-लिखी या निरक्षर महिलाएं वापस लड़ रही हैं। इन छोटे-छोटे गांवों में नौकरी करने वाली, बाइक चलाने वाली महिलाओं के पास पुरुष साथी के ऊपर निर्भर बने रहने का कोई कारण नहीं है।
कोविड के बाद से उन सामाजिक नेटवर्क से बचना आसान हो गया है, जहां तलाक को बदनाम किया जाता था। अब तलाक के बारे में बहुत कम आंटियों और अंकल की राय होती है, क्योंकि ऐसा लगता है कि कई परिवारों में अलगाव हो रहा है या विवाह टूट रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ की एक रपट के मुताबिक भारत में एक चौथाई महिलाएं साथी की हिंसा झेलती हैं, और कई बिना प्रेम के जीवन गुजार देती हैं। कुछ लोग इसकी वजह पारंपरिक भारतीय मूल्य मानते हैं, जहां परिवार को खुद से ऊपर रखा जाता है और सामाजिक दबाव होता है (जैसे परिवार की प्रतिष्ठा, भाई-बहनों की शादी पर असर, तलाक के बाद की स्थिति), जिसके कारण दंपती घुटन की स्थिति में भी साथ बने रहते हैं। तब भी अमेरिका में तलाक की दर की दर 46% है तो भारत में 1% है।
(ये लेखिका के अपने विचार हैं)
निधि डुगर कुंडलिया का कॉलम:महिलाओं ने अब अकेले में घुटने से मना कर दिया है