जगदंबा सरस्वती का स्मृति दिवस मनाया


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अंबाला। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शांति धाम दयालबाग आश्रम में जगदंबा सरस्वती (मम्मा) का स्मृति दिवस मनाया गया। राजयोगिनी बीके शैली दीदी ने कहा कि सत्य और स्नेह की प्रतीक जगदंबा सरस्वती का जन्म 1919 में अमृतसर में हुआ। इन्होंने स्कूल की पढ़ाई मैट्रिक स्तर तक ही की। उन दिनों ओम मंडली का सत्संग दादा लेखराज के घर पर होता था। एक दिन वे अपनी मां के साथ सत्संग में गई। वहीं पर दादा लेखराज ने मम्मा को अलौकिक ज्ञान की शिक्षा-दीक्षा देनी आरंभ की।
उन्होंने बताया कि कुछ समय में ही मम्मा को सत्संग की संचालिका बना दिया। दादा ने एक कार्यकारिणी समिति बनाई और अपना धन, चल-अचल संपत्ति समिति के नाम कर दी। आगे चलकर इस समिति का नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पड़ा। राजयोगिनी बीके आशा दीदी ने कहा कि मम्मा सर्व गुणों की खान और मानवीय मूल्यों की विशेषताओं से संपन्न थीं। मम्मा ने कभी किसी को मौखिक शिक्षा नहीं दी, बल्कि अपने प्रैक्टिकल जीवन से प्रेरणा दी। इससे दूसरों के जीवन में परिवर्तन आ जाता था। मम्मा के सामने चाहे कितना भी विरोधी, क्रोधी, विकारी, नशेड़ी आ जाता, उनकी पवित्रता, सौम्यता व ममतामयी दृष्टि पाते ही वह शांत हो जाता और मम्मा के कदमों में गिर जाता।

अंबाला। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय शांति धाम दयालबाग आश्रम में जगदंबा सरस्वती (मम्मा) का स्मृति दिवस मनाया गया। राजयोगिनी बीके शैली दीदी ने कहा कि सत्य और स्नेह की प्रतीक जगदंबा सरस्वती का जन्म 1919 में अमृतसर में हुआ। इन्होंने स्कूल की पढ़ाई मैट्रिक स्तर तक ही की। उन दिनों ओम मंडली का सत्संग दादा लेखराज के घर पर होता था। एक दिन वे अपनी मां के साथ सत्संग में गई। वहीं पर दादा लेखराज ने मम्मा को अलौकिक ज्ञान की शिक्षा-दीक्षा देनी आरंभ की।

उन्होंने बताया कि कुछ समय में ही मम्मा को सत्संग की संचालिका बना दिया। दादा ने एक कार्यकारिणी समिति बनाई और अपना धन, चल-अचल संपत्ति समिति के नाम कर दी। आगे चलकर इस समिति का नाम प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पड़ा। राजयोगिनी बीके आशा दीदी ने कहा कि मम्मा सर्व गुणों की खान और मानवीय मूल्यों की विशेषताओं से संपन्न थीं। मम्मा ने कभी किसी को मौखिक शिक्षा नहीं दी, बल्कि अपने प्रैक्टिकल जीवन से प्रेरणा दी। इससे दूसरों के जीवन में परिवर्तन आ जाता था। मम्मा के सामने चाहे कितना भी विरोधी, क्रोधी, विकारी, नशेड़ी आ जाता, उनकी पवित्रता, सौम्यता व ममतामयी दृष्टि पाते ही वह शांत हो जाता और मम्मा के कदमों में गिर जाता।

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