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- N. Raghuraman’s Column Student Exchange Is A Thing Of The Past, Now It’s Time For Friendship Exchange
एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
कुमार साल में सिर्फ दो महीने मेरे दोस्त हुआ करते थे। बाकी के दस महीने हमारी कभी बात नहीं होती थी, क्योंकि हमारे घर में न तो टेलीफोन था और न ही हमारे पास एक-दूसरे को पोस्टकार्ड लिखने के लिए 15 पैसे होते थे। लेकिन दस साल की अपनी स्कूली पढ़ाई के दौरान गर्मियों की छुट्टियों में हम नियमित मिलते रहे।
हम एक-दूसरे के घरों में से किसी के भी यहां खाना खा लेते थे और कभी-कभी तो दोनों घरों में एक-एक कर भोजन किया करते थे, लेकिन इससे किसी को परेशानी नहीं होती थी। हमारी माताएं सहपाठी थीं और मंदिरों का शहर कहलाने वाले कुम्भकोणम से 6 किमी दूर, अपने पैतृक गांव उमयालपुरम में आमने-सामने के घरों में रहती थीं।
कुमार के पिता का निधन जल्दी हो गया था, इस कारण उनकी मां अपने माता-पिता के घर लौट आई थीं। कुमार अपने नाना के घर पले-बढ़े और मैं जब भी अपने नाना के यहां जाता था, गर्मियों की छुट्टियां उनके साथ बिताता था। कुमार ने कभी अपना गांव नहीं छोड़ा, जिसकी आबादी कभी भी एक हजार से अधिक नहीं रही।
उन्होंने परिवहन निगम में काम किया, वहीं से रिटायर हुए और उसी घर में अपनी 84 वर्षीय मां के साथ जीवन बिता रहे हैं। बीते 40 सालों के अपने कामकाजी जीवन के दौरान मैं उनसे पांच से अधिक बार मिलने नहीं गया होऊंगा, लेकिन हम फोन के जरिए जुड़े रहे। हमारी दोस्ती की खूबसूरती यह है कि जब वो मुझसे मिलने मुम्बई आए तो मेरी जीवनशैली या इस महानगर की चमक-दमक से आतंकित नहीं हुए।
मैं उनकी सादा जीवनशैली से हमेशा प्रभावित रहा, जिसमें वॉशिंग मशीन, एसी, बड़ी स्क्रीन वाली टीवी जैसी चीजों तक का अभाव था। उनके पास सुविधा के नाम पर एक स्कूटर ही था, जिसकी मदद से वे रोजमर्रा की खरीदारी करते थे और जरूरत पड़ने पर परिवार के सदस्यों को डॉक्टर के यहां ले जाया करते थे।
मैं अपनी युवा बेटी के साथ तीन बार उनके घर जाकर ठहरा था, ताकि बेटी को इस बात का अनुभव करवा सकूं कि गांवों का जीवन कितना सुंदर होता है। इस तरह के अनुभव बच्चों को विनम्र, उदार व यथार्थवादी बनाए रखते हैं। मुझे अपने अतीत की यह याद तब आई, जब मैंने पढ़ा कि अमेरिकी पैरेंट्स अपने टीनएजर बच्चों के लिए गांव और शहर की अदला-बदली कर रहे हैं, ताकि उन्हें अपनी स्थापित धारणाओं से मुक्त करा सकें।
चूंकि वे स्कूली बच्चे राजनीतिक, नस्लीय, जातीय, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक रूप से एक-दूसरे से भिन्न हैं, इसलिए सैकड़ों स्कूल अब उन्हें ऐसे अनुभव प्रदान कर रहे हैं, जिनकी मदद से वे दूसरों के प्रति मानवीय रवैया अख्तियार कर सकें और बाद में उन्हें शत्रुता की दृष्टि से न देखें।
द अमेरिकन एक्सचेंज प्रोजेक्ट शहरों में पले-बढ़े लॉस एंजेलिस के टीनएजर्स को अरकंसास, ओहायो, साउथ डकोटा के ग्रामीण इलाकों में भेज रहे हैं, वहीं इन उपरोक्त स्थानों सहित टेक्सास, पेन्सिलवेनिया आदि के आंचलिक स्थानों के बच्चे लॉस एंजेलिस आ रहे हैं। इस प्रकार महानगर के सैकड़ों बच्चों ने ग्रामीण जीवन और गांवों के सैकड़ों बच्चों ने महानगर के जीवन का अनुभव किया।
ग्रामीण परिवारों ने शहरी बच्चों का भावभीना स्वागत किया और उन्हें स्थानीय गिरजाघर में ले जाते हुए आसपास के इलाकों की सैर कराई। वहीं शहरी परिवारों ने ग्रामीण बच्चों को मेट्रो ट्रेन की यात्रा करवाई और थिएटरों, प्रदर्शनियों, संग्रहालयों आदि में ले गए। उन्होंने उन्हें शहरी यातायात और फास्ट-फूड जीवनशैली का अनुभव भी कराया।
इस प्रकार के अनुभवों से शहरी और ग्रामीण बच्चों के बीच परस्पर समझ और तालमेल का विकास हुआ और उन्हें यह अहसास हुआ कि हम जीवन के तमाम पहलुओं को नहीं जान सकते और इसके चलते कोई किसी से कमतर नहीं है। तो इस रविवार को आप भी अपने बच्चों को किसी ग्रामीण इलाके में ले जाएं और उन्हें उस जीवन का अनुभव कराएं। कभी-कभी ग्रामीण बच्चों को भी अपने घरों में सप्ताहांत के लिए निमंत्रित करें।
फंडा यह है कि अपने स्तर पर एक फ्रेंडशिप एक्सचेंज प्रोग्राम की शुरुआत करें, ताकि हम अपनी आने वाली पीढ़ी को अधिक उदार और सहिष्णु बना सकें।
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