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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
46 वर्षीय प्रवीण पाटिल भी बिल्कुल यही सोचते हैं और उन्होंने अपनी बेटी सान्वी पाटिल (11) और एक अन्य बच्चे अर्नव भोइंकर (12) के साथ इस महीने ये प्रयोग किया। प्रवीण ने सोचा कि क्यों न इस साल गर्मियों की छुट्टियों का मजा कुछ अलग तरीके से उठाया जाए और तय किया कि साइकिल चलाते हुए मुंबई से कन्याकुमारी तक जाएंगे।
उनका मानना है कि इस तरह का अनुभव न केवल बच्चों को मोबाइल और अन्य गैजेट्स से दूर करेगा, बल्कि उनके पास भी बचपन की वह सब यादें होंगी, जैसी हमारे पास झूले झूलते हुए की हैं। वह देख रहे हैं कि आजकल के बच्चे कैरम, शतरंज या सांप-सीढ़ी जैसे खेल भी मोबाइल पर खेलते हैं।
स्थानीय सरकारी अस्पताल में काम करने वाले प्रवीण ने जब अपनी बेटी से ये आइडिया शेयर किया, तो वो तुरंत तैयार हो गई। चूंकि अर्नव भी नियमित साइकिल चलाता है, ऐसे में जब उन्होंने अर्नव के माता-पिता को ये आइडिया बताया, तो वे भी राजी हो गए। तीनों ने 2 मई को मुंबई से यात्रा शुरू की और कोंकण होते हुए धीरे-धीरे दक्षिण की ओर बढ़ते हुए लगभग 100 किमी प्रतिदिन की दूरी तय करते हुए दो सप्ताह में कन्याकुमारी पहुंचे।
बच्चों ने इस यात्रा से क्या सीखा? 1. योजना बनाना। उन्होंने यात्रा में वो सभी जरूरी चीजें ली, जो इस भीषण गर्मी में काम आ सकती थीं, पर वजन में हल्की हो। पानी की बोतल, पोषण के लिए सूखे मेवे, चिक्की, स्नैक्स आदि। 2. अनुशासन।
चूंकि ट्रैफिक कोई बड़ी समस्या है, ऐसे में प्रवीण ने टीम के लिए एक नियम बनाया- तीनों एक के पीछे एक साइकिल चलाएं और एक-दूसरे से दूरी ज्यादा न हो ताकि जोर से आवाज लगाकर सुना जा सके। ताकि ध्यान हमेशा सड़क पर रहे, न कि बातचीत पर। 3. वर्तमान में रहना।
उन्होंने रेस्तरां का चयन सावधानीपूर्वक किया ताकि रास्ते में बीमार न पड़ें। भोजन हल्का और पौष्टिक रखा। केले हमेशा हाथ में होते थे, जिससे बच्चों ने सीखा कि स्वस्थ भोजन क्या होता है और शरीर पर उसका क्या प्रभाव पड़ता है। उन्होंने ये भी समझा कि कौन-सा फूड शरीर के लिए अच्छा है और कौन-सा नहीं। 4. शरीर की सुनना।
चूंकि उन्होंने विभिन्न तापमान वाले इलाकों से यात्रा की, जिससे उनके शरीर ने भी प्रतिक्रिया दी। जब उन्हें लगा कि बहुत थकान हो रही है या बहुत गर्मी है, तो उन्होंने लंबा ब्रेक लिया और जब शरीर गर्मी सहने के लिए तैयार था, तो फिर से साइकिल चलाना शुरू किया। 5. सराहना को हैंडल करना सीखा। इन युवा साइकिलिस्ट के बारे में जानकर और देखकर राह चलते लोग भी चौंक रहे थे।
प्रवीण का मानना है कि असली शो-स्टॉपर तो बच्चे ही थे। कुछ ने उन्हें रोका और सवालों की बौछार की; तो कुछ ने सेल्फी ली। एक जगह पर तो एक परिवार उनके नाश्ते का बिल चुकाने पर जोर दे रहा था जबकि कुछ ने उनके प्रयास को सलाम किया। तमिलनाडु में एक अजनबी ने उन्हें अपने घर पर आराम करने के लिए भी आमंत्रित किया।
वे लोग 14 दिनों में कन्याकुमारी पहुंचे। सोमवार को उन्होंने अपनी वापसी यात्रा शुरू की और दोनों तरफ को मिलाकर लगभग 3,300 किमी की दूरी पूरी करेंगे। मुझे यकीन है कि ऐसी यात्राएं बच्चों के लिए सबसे यादगार साबित होंगी और वापस लौटने पर उनके पास साझा करने के लिए सैकड़ों कहानियां होंगी।
आज के समय में, जहां इंटरनेट की लत और स्क्रीन-निर्भरता बच्चों और किशोरों के लिए एक बड़ी चिंता है, विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि “बोरियत को भी सेलिब्रेट करें!” हां। अगली बार जब आपका बच्चा गर्मी की छुट्टियों में बोर होने की शिकायत करे, तो जमकर सेलिब्रेट करें और अपने बच्चे से कहें, “ये बढ़िया है!
बोरियत आपके दिमाग को कुछ रचनात्मक बनने के लिए प्रेरित करती है!” हमें हर चीज तयशुदा तरीके से करने की जरूरत नहीं। कुछ नहीं करना भी अच्छा है। नए अनुभव चाहते हैं, तो बिल्कुल गैर-नियोजित या पैटर्न तोड़कर पूरी तरह कुछ नया ट्राय करो।
फंडा यह है कि बोरियत अस्थायी अवस्था है और इसका संकेत है कि अब हम स्क्रीन से परे जाकर कुछ नया अनुभव करने वाले हैं। बच्चों को कुछ ऐसा करने के लिए लेकर जाएं, जैसा ऊपर के उदाहरण में बच्चों ने किया और फिर देखें कि यह कैसे आपके बच्चों को प्रेरणा से भर देता है।
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एन. रघुरामन का कॉलम: गर्मियों की छुट्टियों में बच्चों की बोरियत भी सेलिब्रेट करें