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एन. रघुरामन का कॉलम:देश को गौरवान्वित करने वालों को हमारा साथ चाहिए Politics & News

एन. रघुरामन का कॉलम:देश को गौरवान्वित करने वालों को हमारा साथ चाहिए Politics & News

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5 दिन पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु - Dainik Bhaskar

एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

कल्पना करें, हमारे बीच में से कोई किसी एक खास खेल में बहुत अच्छा है। हर आता-जाता व्यक्ति उन्हें शहर, राज्य या देश के लोगों की तुलना में शानदार खेलता हुआ देखता है। इस आत्मविश्वास और प्रोत्साहन से वह पूरे चार सालों तक इसी तरह रोज अपना हर मिनट खर्च करते हैं।

वह सुबह उठकर अभ्यास के लिए जाते हैं। नाश्ता करके फिर अभ्यास शुरू कर देते हैं। लंच के बाद फिर से अभ्यास। सूर्यास्त के बाद हल्का डिनर लेकर अपने ही अभ्यास के वीडियो देखते हैं और सावधानी से चीजें लिखते हैं कि वो कहां गलत थे और कहां सुधार की गुंजाइश है।

वे कड़ा परिश्रम करते हैं क्योंकि वे एक दिन ओलिंपिक में जाना चाहते हैं। और अंततः वे अपना दमखम दिखाने के लिए पेरिस ओलिंपिक में पहुंच जाते हैं। पेरिस में वे बिल्कुल वही चीज करते हैं, जो पिछले चार सालों में जितनी निपुणता से कर सकते थे, करते आ रहे हैं। फिर कोई और आता है और उसी खेल में उनसे थोड़ा बेहतर करके दिखाता है- शायद कुछ सेंटीमीटर्स आगे, एक पॉइंट ज्यादा या माइक्रो सेकंड का फर्क।

वे अवसाद में चले जाते हैं। उस 9 घंटे की फ्लाइट में आंसू रोकने की कोशिश करते हुए अकेले लौटते हैं। घर पहुंचते हैं और माता-पिता उन्हें संबल देते हैं। उन्हें उन पर गर्व है। फिर अगले दो महीने वह घर से बाहर नहीं निकलते। दोस्तों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों से मिलने से भी मना कर देते हैं। और जब भी उनसे मुलाकात होती है, वह उनसे नजरें तक नहीं मिलाते। लेकिन माता-पिता उत्साह बनाए रखते हैं।

वे यह श्लोक याद दिलाते रहते हैं- ‘उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम्। सोत्साहस्य च लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्।’ इसका अर्थ है- ‘उत्साह शक्तिशाली लोगों की ताकत है। उत्साह से बढ़कर कोई अन्य बल नहीं है। उत्साही के लिए इस संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं।’ और धीरे-धीरे वह फिर से अभ्यास करने लगते हैं। और फिर वही चीज अगले चार साल दोहराते हैं, अगले ओलिंपिक की तैयारी करते हैं।

जब मनु भाकर ने पिछले हफ्ते अपनी तीसरी इवेंट से पहले प्रशंसकों को ये संदेश भेजा कि अगर मेडल टैली में वह एक और मेडल नहीं जोड़ पाती हैं तो लोग ‘गुस्सा न हों’, तो मुझे याद आया कि ये महान खिलाड़ी इस तरह की वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए किस तरह की तैयारी से गुजरते हैं और कम उम्र से ही वाकई बहुत कड़ी मेहनत करते हैं।

अभी जारी पेरिस ओलंपिक में, निशानेबाजी में देश के लिए मेडल लाने पहली महिला शूटर के रूप में इतिहास बनाते हुए मनु ने दो कांस्य पदक जीते, उनका संदेश हमारे धैर्य, खेल जगत में सार्वजनिक हस्तियों से पेश आने के हमारे तरीके के बारे में बहुत कुछ कहता है।

अधिकांश माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे इंजीनियरिंग या मेडिसिन जैसे किसी न किसी क्षेत्र में पेशेवर हों, लेकिन अगर किसी को मेडल नहीं मिलता, तो वे ट्रोल करते हैं। हममें से कितने लोगों ने बच्चों को खिलाड़ी बनने और देश के लिए मेडल लाने को प्रेरित किया है? कुछ ने किया होगा, पर 140 करोड़ की आबादी वाले देश में ये काफी नहीं है।

खिलाड़ियों के दिमाग पर पड़ने वाला यह दबाव किसी एग्जाम से पहले माता-पिता के दबाव से कहीं ज्यादा होता है। मनु अभी सिर्फ 22 साल की हैं और हम चाहते हैं कि वह 1.4 अरब लोगों की उम्मीदों का बोझ उठाएं?

क्या वाकई हमारे पास किसी को जज करने का अधिकार है, जिन्होंने कोशिश की और मेडल नहीं जीत सके या कम मेडल मिले या हार गए? मुझे लगता है, जब तक हम खुद देश को गर्व महसूस कराने के लिए ऐसा कोई तमगा नहीं लाते, तब तक हमें उन्हें कुछ कहने का अधिकार नहीं है। आप क्या कहते हैं?

फंडा यह है कि ऐसी कड़ी प्रतिस्पर्धाओं में जीत के लिए मेंटल कंडीशनिंग महत्वपूर्ण है। अगर हम अपने बच्चों को खेल छोड़कर बाकी सारे क्षेत्रों में भेज रहे हैं, तो कम से कम, अपने नौजवान खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन तो कर सकते हैं, फिर चाहे उन्होंने देश के लिए मेडल जीते हों या नहीं। क्योंकि उनकी मेहनत ज्यादा मायने रखती है।

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