एकांतवास में भगवान जगन्नाथ, एक जुलाई को निकाली जाएगी रथ-यात्रा


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पानीपत। हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का बड़ा महत्व है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती है। इस बार रथयात्रा एक जुलाई को निकाली जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरू होती है। जगन्नाथ की रथयात्रा पूरे भारत में एक त्योहार की तरह मनाई जाती है।
ज्योतिषाचार्य पं. राधे-राधे ने बताया कि पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथयात्रा का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया से होता है। इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ 30 जून को सुबह 10:49 बजे से हो रहा है, जिसका समापन एक जुलाई को दोपहर 01:09 बजे होगा। ऐसे में इस वर्ष जगन्नाथ रथयात्रा एक जुलाई को शुरू होगी।

14 जून को एकांतवास में चले गए थे भगवान जगन्नाथ
14 जून की नौ बजे रात्रि को भगवान जगन्नाथ का कपाट बंद कर दिया गया। भगवान एकांतवास में चले गए हैं। 30 जून को रात नौ बजे कपाट खोल दिया जाएगा। एक जुलाई को भगवान भक्तों को दर्शन देंगे। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 14 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया गया। इसे सहस्त्रधारा स्नान कहते हैं। इस स्नान की वजह से वे तीनों बीमार हो गए हैं इसलिए वे 14 दिनों तक एकांतवास में रहेंगे और 15वें दिन दर्शन देंगे।

यात्रा में भाग लेने वाले को मिलता है ये पुण्य
भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) उनके भाई बलराम (बलभद्र) और बहन सुभद्रा रथयात्रा के मुख्य आराध्य होते हैं। जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है तो उन्हें 100 यज्ञ करने का फल प्राप्त हो जाता हैं। कहा जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्कंदपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।

पानीपत। हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का बड़ा महत्व है। आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती है। इस बार रथयात्रा एक जुलाई को निकाली जाएगी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरू होती है। जगन्नाथ की रथयात्रा पूरे भारत में एक त्योहार की तरह मनाई जाती है।

ज्योतिषाचार्य पं. राधे-राधे ने बताया कि पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथयात्रा का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया से होता है। इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ 30 जून को सुबह 10:49 बजे से हो रहा है, जिसका समापन एक जुलाई को दोपहर 01:09 बजे होगा। ऐसे में इस वर्ष जगन्नाथ रथयात्रा एक जुलाई को शुरू होगी।



14 जून को एकांतवास में चले गए थे भगवान जगन्नाथ

14 जून की नौ बजे रात्रि को भगवान जगन्नाथ का कपाट बंद कर दिया गया। भगवान एकांतवास में चले गए हैं। 30 जून को रात नौ बजे कपाट खोल दिया जाएगा। एक जुलाई को भगवान भक्तों को दर्शन देंगे। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 14 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया गया। इसे सहस्त्रधारा स्नान कहते हैं। इस स्नान की वजह से वे तीनों बीमार हो गए हैं इसलिए वे 14 दिनों तक एकांतवास में रहेंगे और 15वें दिन दर्शन देंगे।



यात्रा में भाग लेने वाले को मिलता है ये पुण्य

भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) उनके भाई बलराम (बलभद्र) और बहन सुभद्रा रथयात्रा के मुख्य आराध्य होते हैं। जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है तो उन्हें 100 यज्ञ करने का फल प्राप्त हो जाता हैं। कहा जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्कंदपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।

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