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ऐंकर
उम्मीद की मशाल
फोटो:- 14ए
शवों को सम्मान दिलवाने का जुनून, अपनों तक पहुंचा रहे पार्थिव देह
-दो सौ श्रमिकों के शवों को परिवार तक पहुंचा चुके और 50 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं जयप्रकाश कुमार
अभय सिंह
जगाधरी। हर धर्म में पार्थिक देह का अंतिम संस्कार करना जरूरी माना जाता है। मान्यता है कि अपनों द्वारा अंतिम कर्म न होने से व्यक्ति की सांसारिक यात्रा पूर्ण नहीं होती है। मृतक को अपनों से अंतिम तर्पण मिल सके, इसके लिए जम्मू कॉलोनी निवासी जयप्रकाश कुमार जी जान से जुटे हैं। सालों से वे पार्थिक देह को सम्मान दिलवाने के लिए काम कर रह हैं।
यमुनानगर जगाधरी औद्योगिक नगरी है। यहां पर प्रदेश सहित जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल, उड़ीसा सहित तमाम राज्यों के लोग काम करने आते हैं। अधिकांश जरूरतमंद हैं और काम कर परिवार का गुजर बसर करते हैं। कई बार इन श्रमिकों के साथ हादसे भी हो जाते हैं, जिसमें जान तक चली जाती है। धन के अभाव में परिजन सैकड़ों मील दूर से शव नहीं मंगवा सकते और न ही आर्थिक परेशानी के चलते पहुंच सकते हैं। ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों के लिए जयप्रकाश उम्मीद की किरण हैं। जय प्रकाश जिले में हुए विभिन्न हादसों और कारणों से जान गंवाने वाले करीब ढाई सौ लोगों के शवों को उनके परिवार तक पहुंचा चुके हैं। करीब नौ साल पहले जय प्रकाश ने यह पुनीत कार्य शुरू किया था।
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इस तरह जागा दिल में जज्बा
जयप्रकाश ने बताया कि कई साल पहले उनके सामने एक ऐसा मंजर आया, जिससे उनका दिल पसीज गया। जिसके बाद उन्होंने इसे अपना लक्ष्य बना लिया। जयप्रकाश ने बताया कि करीब दस साल पहले उन्होंने एक हादसा देखा जिसमें श्रमिक की मौत हो गई। परिजन बिहार स्थित अपने घर थे। यहां उसका भाई अकेला था। परिवार को इसका पता चला तो उन पर दुखों का पहाड़ टूट गया। परिजन शव लाकर पैतृक गांव में अंतिम संस्कार करने की कहने लगे। इस बारे में जब एंबुलेंस से बात की तो इस पर कई हजारों का खर्च बताया। परिवार में मां बाप बेटे का अंतिम बार चेहरा देखने के लिए विलाप करते रहे। परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि वे सभी यहां आ सकें । ऐसे में उसके साथ रहने वाला भाई लोगों से मदद मांगने लगा, लेकिन एंबुलेंस के किराए जितने पैसे नहीं जुटा पाया। जिसके बाद परिवार के बिना ही भाई ने मजबूर होकर यहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया और अस्थियां लेकर घर लौट गया। उस समय पीड़ित परिवार की बेबसी देख कर उनका दिल पसीज गया। जिसके बाद उन्होंने इस पर काम करना शुरू किया, तो पता चला यह पहला मामला नहीं है। श्रमिकों की मौत पर हर किसी के साथ यही परेशानी पेश आती है। जिस पर उन्होंने ऐसे लोगों की सहायता करने का मन बनाया।
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ढाई सौ से ज्यादा शवों को मिला सम्मान
जय प्रकाश ने बताया कि शुरुआत में इसे लेकर काफी परेशानी आई। जिले में अधिकांश पूर्वोत्तर भारत के लोग काम करते हैं। सैकड़ों मील दूर शव पहुंचाने में समय, ईंधन व धन पर्याप्त मात्रा में चाहिए होता है। असम में शव पहुंचाने में इन दिनों करीब 60 से 70 हजार रुपये तक खर्च आ जाता है। शव खराब होने के कारण आइसोलेटेड एंबुलेंस की आवश्यकता होती है। जिसका खर्च ज्यादा है। जयप्रकाश ने बताया कि उन्होंने इसकी अकेले शुरुआत की और आज बहुत से लोग उनकी इसमें सहायता कर रहे हैं। वे अब तक करीब करीब दो सौ शवों को परिजनों तक पहुंचा चुके हैं, जबकि 50 से ज्यादा शवों का वैदिक कर्म के अनुसार स्वयं अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।
ऐंकर
उम्मीद की मशाल
फोटो:- 14ए
शवों को सम्मान दिलवाने का जुनून, अपनों तक पहुंचा रहे पार्थिव देह
-दो सौ श्रमिकों के शवों को परिवार तक पहुंचा चुके और 50 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार करवा चुके हैं जयप्रकाश कुमार
अभय सिंह
जगाधरी। हर धर्म में पार्थिक देह का अंतिम संस्कार करना जरूरी माना जाता है। मान्यता है कि अपनों द्वारा अंतिम कर्म न होने से व्यक्ति की सांसारिक यात्रा पूर्ण नहीं होती है। मृतक को अपनों से अंतिम तर्पण मिल सके, इसके लिए जम्मू कॉलोनी निवासी जयप्रकाश कुमार जी जान से जुटे हैं। सालों से वे पार्थिक देह को सम्मान दिलवाने के लिए काम कर रह हैं।
यमुनानगर जगाधरी औद्योगिक नगरी है। यहां पर प्रदेश सहित जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, अरुणाचल, उड़ीसा सहित तमाम राज्यों के लोग काम करने आते हैं। अधिकांश जरूरतमंद हैं और काम कर परिवार का गुजर बसर करते हैं। कई बार इन श्रमिकों के साथ हादसे भी हो जाते हैं, जिसमें जान तक चली जाती है। धन के अभाव में परिजन सैकड़ों मील दूर से शव नहीं मंगवा सकते और न ही आर्थिक परेशानी के चलते पहुंच सकते हैं। ऐसे में इन प्रवासी मजदूरों के लिए जयप्रकाश उम्मीद की किरण हैं। जय प्रकाश जिले में हुए विभिन्न हादसों और कारणों से जान गंवाने वाले करीब ढाई सौ लोगों के शवों को उनके परिवार तक पहुंचा चुके हैं। करीब नौ साल पहले जय प्रकाश ने यह पुनीत कार्य शुरू किया था।
बाक्स
इस तरह जागा दिल में जज्बा
जयप्रकाश ने बताया कि कई साल पहले उनके सामने एक ऐसा मंजर आया, जिससे उनका दिल पसीज गया। जिसके बाद उन्होंने इसे अपना लक्ष्य बना लिया। जयप्रकाश ने बताया कि करीब दस साल पहले उन्होंने एक हादसा देखा जिसमें श्रमिक की मौत हो गई। परिजन बिहार स्थित अपने घर थे। यहां उसका भाई अकेला था। परिवार को इसका पता चला तो उन पर दुखों का पहाड़ टूट गया। परिजन शव लाकर पैतृक गांव में अंतिम संस्कार करने की कहने लगे। इस बारे में जब एंबुलेंस से बात की तो इस पर कई हजारों का खर्च बताया। परिवार में मां बाप बेटे का अंतिम बार चेहरा देखने के लिए विलाप करते रहे। परिवार की हालत ऐसी नहीं थी कि वे सभी यहां आ सकें । ऐसे में उसके साथ रहने वाला भाई लोगों से मदद मांगने लगा, लेकिन एंबुलेंस के किराए जितने पैसे नहीं जुटा पाया। जिसके बाद परिवार के बिना ही भाई ने मजबूर होकर यहीं उसका अंतिम संस्कार कर दिया और अस्थियां लेकर घर लौट गया। उस समय पीड़ित परिवार की बेबसी देख कर उनका दिल पसीज गया। जिसके बाद उन्होंने इस पर काम करना शुरू किया, तो पता चला यह पहला मामला नहीं है। श्रमिकों की मौत पर हर किसी के साथ यही परेशानी पेश आती है। जिस पर उन्होंने ऐसे लोगों की सहायता करने का मन बनाया।
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ढाई सौ से ज्यादा शवों को मिला सम्मान
जय प्रकाश ने बताया कि शुरुआत में इसे लेकर काफी परेशानी आई। जिले में अधिकांश पूर्वोत्तर भारत के लोग काम करते हैं। सैकड़ों मील दूर शव पहुंचाने में समय, ईंधन व धन पर्याप्त मात्रा में चाहिए होता है। असम में शव पहुंचाने में इन दिनों करीब 60 से 70 हजार रुपये तक खर्च आ जाता है। शव खराब होने के कारण आइसोलेटेड एंबुलेंस की आवश्यकता होती है। जिसका खर्च ज्यादा है। जयप्रकाश ने बताया कि उन्होंने इसकी अकेले शुरुआत की और आज बहुत से लोग उनकी इसमें सहायता कर रहे हैं। वे अब तक करीब करीब दो सौ शवों को परिजनों तक पहुंचा चुके हैं, जबकि 50 से ज्यादा शवों का वैदिक कर्म के अनुसार स्वयं अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।
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