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आशाओं का अमन है यह पहलवान, पेरिस में दिलाया मेडल, कहानी जान आप भी करेंगे सलाम Latest Haryana News


झज्जर. अमन सहरावत ने पेरिस ऑलिंपिक्स में भारत को छठा मेडल दिलाया और 57 किलोग्राम कुश्ती में कांस्य पदक जीता. पूरे मैच में अपने विरोधी को कभी भी हावी नहीं होने दिया और बढ़त बनाए रखी और एकतरफा मुकाबला जीता.

हरियाणा के झज्जर जिले के एक छोटे से गांव बिरोहड़ में जन्मे अमन सहरावत ने 10 साल की छोटी सी उम्र में जिंदगी की सबसे बड़ी त्रासदी झेली, जब 2013 और 2014 में उनके माता-पिता का निधन हो गया. अमन ने अखाड़े में जाने से पहले जिंदगी की मुश्किलों से बड़ी जंग लड़ी. दादा मांगेराम सहरावत ने अपने कंधों पर पोते अमन को बिठाकर खिलाने, घुमाने की बजाय परवरिश की जिम्मेदारी अपने बुजुर्ग कंधों पर उठा ली. आज अमन के ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने पर वह खुशी से फूले नहीं समा रहे. उन्होंने कहा कि बचपन में यही सोचकर अमन की परवरिश की कि एक दिन मेरा पोता मेरा नाम दुनिया में रोशन करेगा और उसने कर दिखाया.

कभी आंखें नम, तो कभी चेहरे पर मुस्कान
लाइव मैच में अमन का हर दांव देखकर गांव के लोग जयकारे लगाते तो दादी की बुजुर्ग आंखें कभी नम होतीं तो कभी बिना दांत वाले मुंह पर मुस्कान आ जाती. दादी ने कहा, ‘बहुत अच्छा बेटा है मेरा अमन, आएगा तो उसे वही चूरमा खिलाऊंगी, दूध पिलाऊंगी जो उसे बचपन में कुश्ती से पहले दिया करती थी.’

अमन के ताऊ सुधीर सहरावत कहते हैं कि वो गांव में खेती करने वाले साधारण आदमी हैं, पर खेल में आगे बढ़ाने के लिए कभी पिता की कमी अमन को नहीं खलने दी और पूरे परिवार ने उसके सपनों को संवारा. अमन के ताऊ ने कहा कि हमें गोल्ड की पूरी उम्मीद थी, लेकिन अमन ने जो जीता हमारे लिए वही गोल्ड है.

अमन सहरावत के चचेरे भाई बहन, राकेश और ज्योति ने न्यूज़18 को बताया कि कैसे बचपन में सब भाई बहनों के बीच अमन सबसे अलग और सिर्फ़ अपने लक्ष्य पर निगाह रखने वाला लड़का था. गांव के अखाड़े में भाई राकेश भी अमन के साथ जाया करता था, लेकिन राकेश को पता था कि शायद हम ऐसा कारनामा नहीं कर पाएंगे, जो अमन ने दुनिया में कर दिखाएगा.

बिस्तर के ठीक सामने ओलंपिक गोल्ड मेडल की तस्वीर
दोस्त की तरह साथ पले-बढ़े भाई राकेश ने गम और खुशी के मिश्रित आंसू आंखों में लेकर कहा, ‘अमन के माता-पिता होते तो शायद आज हम सबके बीच खुशियां कई गुना बढ़ गई होती. साथ ही वो कहते हैं कि ‘अमन का जज्बा अलग है, अमन ने अपने ट्रेनिंग सेंटर के कमरे में दीवार पर लिख रखा है ‘अगर इतना ही आसान होता तो हर कोई कर लेता.’ इसके अलावा अमन ने अपने बिस्तर के ठीक सामने ओलंपिक गोल्ड मेडल की तस्वीर लगा रखी है. रोज़ सुबह अमन सहरावत आंखें खोलते ही सबसे पहले ओलंपिक गोल्ड मेडल की तस्वीर को ऐसे देखाता है, जैसे कोई अपने इष्ट आराध्या के दर्शन करता हो. यही अमन का सपना और जिंदगी का लक्ष्य है.’

अमन की मौसी कहती हैं कि मां के गुजर जाने के बाद से अमन मुझे ही मां कहता आया है. चाची और ताई ने भी कभी अमन को मां की कमी नहीं खलने दी और बेटे की तरह पाल-पोसकर बड़ा किया और उसकी तमन्ना को पूरा करने की हर संभव कोशिश की.

गांव में जश्न का माहौल
गांव के बाहर खेतों के बीच बने एक छोटे से मकान में जश्न का माहौल था. गांवभर के लोग एक दूसरे को मिठाइयां खिला रहे थे, गले लगा कर बधाइयां दे रहे थे. अमन के छोटे चचेरे भाई ने तो वह गदा ही हाथ में उठा ली, जो पहली बार अमन ने गांव की मिट्टी के अखाड़े में जीती थी और कहने लगा अब तो मुझे भी अमन भाई की तरह ही पहलवान बनना है.

अमन के माता-पिता की तस्वीर हाथों में लिए अमन की मौसी चाची, ताई, भाई, बहन सभी की आंखें नम थी, लगातार आंखों से आंसू बहते रहे, बहते आंसुओं को होठों से समेट कर सिर्फ ये कहा-‘हमने तो अमन को सिर्फ बचपन में संभाल उसने तो हमारी पूरी जिंदगी सफल कर दी…

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