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अमन ने 6 महीने के अंदर मां-बाप को खोया:पिता के सपने को पूरा करने के लिए रेसलिंग में आए; मेडल से एक जीत दूर Today Sports News

अमन ने 6 महीने के अंदर मां-बाप को खोया:पिता के सपने को पूरा करने के लिए रेसलिंग में आए; मेडल से एक जीत दूर Today Sports News

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अमन 11 साल था, जब उसकी मां दुनिया छोड़कर चली गई। वो डिप्रेशन में न चला जाए, इसलिए पिता ने कुश्ती में डाल दिया, लेकिन 6 महीने बाद पिता का भी देहांत हो गया…।

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यह बताते हुए पेरिस ओलिंपिक में भारत के इकलौते पुरुष पहलवान अमन सहरावत की मौसी सुमन की आंखों में आंसू आ जाते हैं। तुरंत ही वे पूरे भरोसे के साथ कहती हैं, ‘अमन ने कहा था पिता का सपना जरूर पूरा करूंगा।’

21 साल के अमन पेरिस ओलिंपिक रेसलिंग की 57 kg कैटेगरी के सेमीफाइनल में पहुंच गए हैं। वे पेरिस ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाले इकलौते पुरुष पहलवान हैं। सुमन ने बताया, ‘अमन के पिता का सपना था कि घर में कोई न कोई पहलवानी करे और भारत के लिए मेडल जीते।’

भास्कर रिपोर्टर झज्जर से करीब 32 किलोमीटर दूर भिड़होड गांव में अमन के घर पहुंचा। पढ़िए अमन सहरावत के घर से ग्राउंड रिपोर्ट….

पेरिस ओलिंपिक का कोटा हासिल करने के बाद अमन सहरावत।

पेरिस ओलिंपिक का कोटा हासिल करने के बाद अमन सहरावत।

​​मां को हार्ट अटैक आया, पिता का बीमारी के कारण देहांत
माता-पिता को खोने के बाद अमन और उनकी बहन अपनी मौसी के यहां चले गए। मौसी ने दोनों को अपने बच्चों की तरह पाला। सहरावत की मौसी सुमन कहती हैं, ‘अमन की मां कमलेश मेरी छोटी बहन थी। उसे हार्ट अटैक आया था। कमलेश के जाने के गम में अमन के पापा भी बीमार रहने लगे और 6 महीने बाद अमन और उसकी बहन को हमको सौंप कर चले गए।’

मां के जाने के बाद उदास न रहे, इसलिए पिता ने छत्रसाल स्टेडियम भेजा
अमन का मन बचपन से ही खेलकूद में लगता था। वे अपनी मौसी के लड़के दीपक के साथ रनिंग और अखाड़े में कुश्ती का अभ्यास करते। दीपक बताते हैं कि चाचा चाहते थे कि घर में कोई न कोई पहलवानी करे और देश के लिए मेडल जीते। उससे पहले चाचा और ताऊ के लड़के को वहां भेजा था, लेकिन दोनों नहीं टिक सके।

कोच ने अपने बगल वाले कमरे में रखा
अमन छत्रसाल स्टेडियम में रहते हैं। बगल में कोच ललित का कमरा भी है। ललित कहते हैं मैंने उसे अपने बगल वाले कमरे में ठहराया, ताकि उसका ध्यान रखा जा सके। वे बताते हैं कि हम लोग उसे घर में कम ही बात करने देते हैं। घरवालों को भी कहा है कि वे यहां कम आएं और कम ही बात करें। इससे उसे घर और माता-पिता की याद आएगी और वह खेल पर फोकस नहीं कर सकेगा।

ललित कहते हैं कि एशियन गेम्स में मेडल जीतने के बाद उसे स्टाफ रूम दिया है। उसमें किचन भी है, ताकि अगर वह अलग से कुछ बनाना चाहें तो अपना बना सकते हैं।

अहम बातें…

  • कमरे में पोस्टर लगाए, ताकि लक्ष्य न भटकेंअमन ने अपने कमरे में ओलिंपिक मेडल और खुद के ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाले पोस्टर लगा रखे हैं, ताकि वे लक्ष्य से भटकें नहीं और ओलिंपिक गोल्ड को फोकस कर ही तैयारी करें।
  • जब भी गांव जाते हैं, पिता के बनवाए मंदिर में माथा टेकते हैंअमन जब-जब गांव जाते हैं। पिता के बनवाए मंदिर में माथा टेकते थे। उनकी मौसी बताती हैं कि जब भी कोई प्रतियोगिता होती है, तो वह घर जरूर आता है और मंदिर में माथा टेकता है। यह मंदिर उसके पिता ने बनवाया था।
  • परिवार ने अलमारी में संभालकर रखे हैं मेडलपरिवार ने अमन के सारे मेडल घर की अलमारी में संभाल कर रखे हैं। उनकी मौसी सुमन मेडल दिखाते हुए कहती हैं, ‘यह अमन की मेहनत है। उसने बहुत मेडल जीते हैं। अभी इसे अलमारी में ही संभाल कर रखा है।’

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अमन ने 6 महीने के अंदर मां-बाप को खोया:पिता के सपने को पूरा करने के लिए रेसलिंग में आए; मेडल से एक जीत दूर

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