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“अमन 11 साल का था, जब उसकी मां दुनिया छोड़कर चली गई। बेटा डिप्रेशन में न चला जाए, इसलिए पिता ने कुश्ती में डाल दिया, लेकिन 6 महीने बाद पिता का भी देहांत हो गया।” यह बताते हुए भारत को रेसलिंग का ओलिंपिक ब्रॉन्ज मेडल दिलाने वाले अमन सहरावत की मौसी सुमन
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तुरंत ही वह पूरे भरोसे के साथ कहती हैं, “अमन के पिता का सपना था कि घर में कोई न कोई पहलवानी करे और भारत के लिए मेडल जीते। अमन ने कहा था पिता का सपना जरूर पूरा करूंगा।” अब उन्होंने 21 साल की उम्र में ओलिंपिक मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया। अमन ने 57 किग्रा कैटेगरी में ब्रॉन्ज मेडल जीता।
अमन सहरावत ने प्यूर्टो रिको के डरलिन तुई क्रूज को 13-5 से हराकर मेडल जीता।
कमरे में गोल्ड मेडल की फोटो
अमन रवि दहिया को अपनी इंस्पिरेशन मानते हैं। दहिया को ही हराकर अमन ने ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई भी किया। दहिया ने टोक्यो ओलिंपिक में भारत को सिल्वर मेडल दिलाया था। दहिया से ही इंस्पिरेशन लेकर अमन ने अपने कमरे में गोल्ड मेडल की फोटो टांगी। उन्होंने अपने कमरे में लिखा है, ‘आसान होता तो हर कोई कर लेता।’

अमन ने अपने कमरे में लिखा है, अगर यह आसान होता तो हर कोई इसे कर लेता।
अब अमन ने वह कारनामा कर दिखाया जो इस ओलिंपिक में भारत का कोई रेसलर नहीं कर सका। अमन ने देश को पेरिस ओलिंपिक में रेसलिंग का पहला मेडल दिलाया। अमन ने प्यूर्टो रिको के डरलिन तुई क्रूज को 13-5 से हराकर मेडल जीता। अमन ने शुरुआती 2 मैच जीतकर सेमीफाइनल में जगह बनाई थी, लेकिन जापान के रेसलर से हारकर ब्रॉन्ज मेडल मैच खेलना पड़ा। जापानी रेसलर ने गोल्ड मेडल जीता।

भास्कर रिपोर्टर झज्जर से करीब 32 किलोमीटर दूर भिड़होड गांव स्थित अमन के घर पहुंचा। पढ़िए अमन सहरावत के घर से ग्राउंड रिपोर्ट….
मां को हार्ट अटैक आया, पिता का बीमारी के कारण देहांत
माता-पिता को खोने के बाद अमन और उनकी बहन अपनी मौसी के यहां चले गए। मौसी ने दोनों को अपने बच्चों की तरह पाला। सहरावत की मौसी सुमन कहती हैं, ‘अमन की मां कमलेश मेरी छोटी बहन थी। उसे हार्ट अटैक आया था। कमलेश के जाने के गम में अमन के पापा भी बीमार रहने लगे और 6 महीने बाद अमन और उसकी बहन को हमको सौंप कर चले गए।’

मां के जाने के बाद उदास न रहे, इसलिए पिता ने छत्रसाल स्टेडियम भेजा
अमन का मन बचपन से ही खेलकूद में लगता था। वे अपनी मौसी के लड़के दीपक के साथ रनिंग और अखाड़े में कुश्ती का अभ्यास करते। दीपक बताते हैं, “चाचा चाहते थे कि घर में कोई न कोई पहलवानी करे और देश के लिए मेडल जीते। अमन से पहले चाचा और ताऊ के लड़के को रेसलिंग करने भेजा था, लेकिन दोनों नहीं टिक सके।”

कोच ने अपने बगल वाले कमरे में रखा
अमन छत्रसाल स्टेडियम में रहते हैं। बगल में कोच ललित का कमरा भी है। ललित कहते हैं, “मैंने उसे अपने बगल वाले कमरे में ठहराया, ताकि उसका ध्यान रखा जा सके। वे बताते हैं कि हम लोग उसे घर में कम ही बात करने देते हैं। घरवालों को भी कहा है कि वे यहां कम आएं और कम ही बात करें, ताकि उसे घर और माता-पिता की कम याद आए और वह खेल पर फोकस कर सके।”
ललित कहते हैं कि एशियन गेम्स में मेडल जीतने के बाद उसे स्टाफ रूम दिया है। उसमें किचन भी है, ताकि अगर वह अलग से कुछ बनाना चाहें तो बना सकता है।

अमन सहरावत ने 21 साल की उम्र में ओलिंपिक मेडल जीता। इसी के साथ वह ओलिंपिक मेडल जीतने वाले भारत के सबसे युवा रेसलर बने।
अहम बातें…
- कमरे में पोस्टर लगाए, ताकि लक्ष्य पर फोकस रहे: अमन ने अपने कमरे में ओलिंपिक मेडल और खुद के ओलिंपिक के लिए क्वालिफाई करने वाले पोस्टर लगा रखे हैं। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि वह लक्ष्य से भटक न जाए और ओलिंपिक गोल्ड पर ही फोकस करें।
- जब भी गांव जाते हैं, पिता के बनवाए मंदिर में माथा टेकते हैं: अमन जब-जब गांव जाते हैं। पिता के बनवाए मंदिर में माथा टेकते थे। उनकी मौसी बताती हैं कि जब भी कोई प्रतियोगिता होती है, तो वह घर जरूर आता है और मंदिर में माथा टेकता है। यह मंदिर उसके पिता ने बनवाया था।
- परिवार ने अलमारी में संभालकर रखे हैं मेडल: परिवार ने अमन के सारे मेडल घर की अलमारी में संभाल कर रखे हैं। उनकी मौसी सुमन मेडल दिखाते हुए कहती हैं, ‘यह अमन की मेहनत है। उसने बहुत मेडल जीते हैं। अभी इसे अलमारी में ही संभाल कर रखा है।’

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अमन ने 11 की उम्र में मां-बाप खोए:कमरे में लिखा- आसान होता तो हर कोई कर लेता; पेरिस ओलिंपिक में जीता ब्रॉन्ज